8.सागर
Anshuman stuti
भगवान मायातीत हैं,फिर भी.. भगवान जब अपने ईक्षणमात्रसे(सृष्टि-संकल्पमात्रसे) मायाके साथ क्रीड़ा करते हैं तब भगवानका संकेत पाते ही जीवोके सूक्ष्मशरीर और जीवोंके सुप्तकर्म-संस्कार जगजाते हैं और चराचर प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है। भगवान परम दयालु हैं। आकाशके समान सबमें सम होनेके कारण न तो कोई भगवानका अपना है और न तो पराया। वास्तव में तो भगवानके स्वरुपमें मन और वाणी की गति ही नहीं है। भगवानमें कार्यकारणरूप प्रपंच का अभाव होने से बाह्य दृष्टि से भगवान शून्यकेसमान ही जान पड़ते हैं; परंतु उस
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