16, नित्यमुक्त
भगवान परम दयालु हैं। नित्यमुक्त आकाशके समान सबमें सम होनेके कारण न तो कोई भगवानका अपना है और न तो पराया। वास्तव में तो भगवानके स्वरुपमें मन और वाणी की गति ही नहीं है। भगवानमें कार्यकारणरूप प्रपंच का अभाव होने से बाह्य दृष्टि से भगवान शून्यकेसमान ही जान पड़ते हैं; परंतु उसदृष्टिके भी अधिष्ठान होनेके कारणभगवान परमसत्य है। भगवान मायातीत हैं,फिर भी.. भगवान जब अपने ईक्षणमात्रसे(सृष्टि-संकल्पमात्रसे) मायाके साथ क्रीड़ा करते हैं तब भगवानका संकेत पाते ही जीवोके सूक्ष्मशरीर और जीवोंके सुप्तकर्म-संस्कार जगजाते हैं और चराचर प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें