5.दुर्वासा, सुदर्शन चक्र स्तुति

  1. अंबरीश ने कहा- प्रभु सुदर्शन! आप अग्नि स्वरूप है।आप ही परम समर्थ सूर्य है।समस्त नक्षत्र मंडल के अधिपति चंद्रमा भी आपके स्वरुप है। पृथ्वी, जल, आकाश,वायु पंचतनमात्रा और संपूर्ण इंद्रियों के रूप में भी आप ही हैं।3
  2. भगवान के प्यारे,हजार दांत वाले चक्र देव! मैं आपको नमस्कार करता हूं। समस्त अस्त्र-शस्त्रों को नष्ट कर देने वाले एवं पृथ्वी के रक्षक! आप इन ब्राह्मण की रक्षा कीजिए।4
  3. आप ही धर्म है, मधुर एवं सत्य वाणी हैं;आदि समस्त यज्ञोंके अधिपति एवं स्वयं यज्ञ भी हैं।आप समस्त लोकों के रक्षक एवं सर्व लोक स्वरूप भी हैं। आप परम पुरुष परमात्मा के श्रेष्ठ तेज है।5
  4. सुनाभ! आप समस्त धर्मों की मर्यादा के रक्षक हैं। अधर्म का आचरण करने वाले असुरों को भस्म करने के लिए आप साक्षात् अग्नि हैं। आप ही तीनों लोकों के रक्षक एवं विशुद्ध तेजोमय है। आप की गति मन के वेग के समान है और आपकेकर्म अद्भुत है। मैं आपको नमस्कार करता हूं, आप की स्तुति करता हूं।6
  5. वेद वाणी के अधीश्वर!आपके धर्ममय तेजसे अंधकार का नाश होता है और सूर्य आदि महापुरुषों के प्रकाश की रक्षा होती है। आप की महिमा का पार पाना अत्यंत कठिन है।ऊंचे नीचे और छोटे बड़ेके भेद भाव से युक्त यह समस्त कार्य कारणात्मक संसार आपका ही स्वरूप है। 7
  6. सुदर्शन चक्र !आप पर कोई विजय नहीं प्राप्त कर सकता। जिस समय निरंजन भगवान आपको चलाते हैं और आप दैत्य और दानवो की सेना में प्रवेश करते हैं, उसमें युद्ध भूमि में उनकी भुजा,उदर, जंघा,चरण और गर्दन आदि निरंतर काटते हुए आप अत्यंत शोभायमान होते हैं।8
  7. विश्व के रक्षक! आप रणभूमि में सबका प्रहार सह लेते हैं, आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।गदाधारी भगवान ने दुष्टों के नाश के लिए ही आपको नियुक्त किया है।आप कृपा करके हमारे कुल के भाग्योदय के लिए दुर्वासा जी का कल्याण कीजिए हमारे ऊपर यह आपका महान अनुग्रह होगा।9
  8. यदि मैंने कुछ भी दान किया हो, यज्ञ किया हो अथवा अपने धर्म का पालन किया हो, यदि हमारे वंश के लोग ब्राह्मणों को ही अपना आराध्य देव समझते रहे हो, तो दुर्वासा जी की जलन मिट जाए।10
  9. भगवान समस्त गुणों के एक मात्र आश्रय है।यदि मैंने समस्त प्राणियोंके आत्माके रूपमें उन्हें देखा हो और वे मुझ पर प्रसन्न हो तो दुर्वासाजीके हृदयकी सारी जलन मिट जाए।11


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