भगवान श्रीराम ने गुरु वशिष्ट जी को अपना आचार्य बनाकर उत्तम सामग्रियों से युक्त यज्ञ के द्वारा अपने आप ही अपने सर्वदेव शुरू स्वयं प्रकाश आत्मा का आयोजन किया। 1 उन्होंने होता को पूर्व दिशा,ब्रह्मा को दक्षिण दिशा ,अध्वर्यु को पश्चिम और उदगाता को उत्तर दिशा दे दी। 2 उनके बीच में जितनी भूमि बच रही थी वह उन्होंने आचार्य को दे दी उनका यह निश्चित आगे संपूर्ण भूमंडल का एकमात्र अधिकारी निश्चय ब्राह्मण ही है। 3 इस प्रकार सारे भूमंडल का दान करके उन्होंने अपने शरीर के वस्त्र और अलंकार ही अपने पास रखें इसी प्रकार महारानी सीता जी के पास भी केवल मांगलिक वस्त्र और आभूषण ही बच रहे। 4 जब आचार्य जी ब्राह्मणों ने देखा कि भगवान श्रीराम तो ब्राह्मणों को ही अपना इष्ट देव मानते हैं उनके हृदय में ब्राह्मणों के प्रति अनंत स्नेह है तब उनका हृदय प्रेम से द्रवित हो गया उन्होंने प्रसन्न होकर सारी पृथ्वी भगवान को लौटा दी और कहा। 5 ŚB 9.11.6 अप्रत्तं नस्त्वया किं नु भगवन् भुवनेश्वर । यन्नोऽन्तर्हृदयं विश्य तमो हंसि स्वरोचिषा ॥ ६ ॥O Lord, You are the Supreme Personality of Godhead, who have accepted the brāhmaṇas...
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