कवच नारायण
रात्रि के पिछले प्रहर में श्रीवत्सलांछन श्रीहरि,उषाकाल में खड़गधारी भगवान जनार्दन,सूर्योदयसे पूर्व श्रीदामोदर और संपूर्ण संध्याओंमें कॉलमूर्ति भगवान विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें। चक्रम युगांतनल
भगवान मायातीत हैं,फिर भी.. भगवान जब अपने ईक्षणमात्रसे(सृष्टि-संकल्पमात्रसे) मायाके साथ क्रीड़ा करते हैं तब भगवानका संकेत पाते ही जीवोके सूक्ष्मशरीर और जीवोंके सुप्तकर्म-संस्कार जगजाते हैं और चराचर प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है। भगवान परम दयालु हैं। आकाशके समान सबमें सम होनेके कारण न तो कोई भगवानका अपना है और न तो पराया। वास्तव में तो भगवानके स्वरुपमें मन और वाणी की गति ही नहीं है। भगवानमें कार्यकारणरूप प्रपंच का अभाव होने से बाह्य दृष्टि से भगवान शून्यकेसमान ही जान पड़ते हैं; परंतु उस